क्या श्राप बन चुकी हैं मौतें? चिन्मय हत्याकांड से उबल उठा गाव

क्या श्राप बन चुकी हैं मौतें? चिन्मय हत्याकांड से उबल उठा गाव 

संतोष सोनी चिट्टू 

/रतनपुर:/भरारी गांव में आठवीं कक्षा के छात्र चिन्मय सूर्यवंशी की निर्मम हत्या के बाद गांव में एक बार फिर गुस्से का ज्वालामुखी फूट पड़ा है। हत्या के मुख्य आरोपी छत्रपाल को जेल भेज दिया गया है, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि ये केवल कहानी का एक सिरा है—पूरी साजिश के पीछे आरोपी के माता-पिता और बहन भी हैं, जिन्हें अब तक बचाया जा रहा है।
"अगर ये हत्या अकेले की गई होती, तो इतनी सफाई से सब कुछ दबाया नहीं जाता," कहते हैं गांव के बुजुर्ग रामदयाल साहू।
ग्रामीणों की मानें तो ये सिर्फ हत्या नहीं, एक सोची-समझी साजिश थी, जिसमें पूरा परिवार शामिल है।

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 हाईवे पर बवाल, पुलिस से सीधी टक्कर

सोमवार सुबह जब ग्रामीणों का हुजूम कलेक्ट्रेट ज्ञापन सौंपने निकला, तो NH-130 पर हालात तनावपूर्ण हो गए। भरारी चौक पर पुलिस और ग्रामीण आमने-सामने आ गए। आधे घंटे तक अफरा-तफरी, नारेबाजी और सड़क जाम की स्थिति बनी रही।
मौके पर एडिशनल एसपी अर्चना झा, कोटा एसडीओपी नूपुर उपाध्याय, और थाना प्रभारी संजय सिंह को खुद उतरना पड़ा मैदान में। पुलिस की समझाइश और आश्वासन के बाद स्थिति सामान्य हो पाई।


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 पुलिस कहती है– 'जांच निष्पक्ष', ग्रामीण कहते हैं– 'दबाया जा रहा है'

पुलिस अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि "अब तक केवल एक ही आरोपी की संलिप्तता सामने आई है, लेकिन हर पहलू की जांच जारी है।"

वहीं दूसरी ओर, ग्रामीणों का आरोप है कि "पुलिस एक खास वर्ग या परिवार को बचाने की कोशिश कर रही है।"


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रतनपुर को क्यों लग रहा बार-बार 'श्राप'?

यह घटना कोई पहली नहीं जब रतनपुर क्षेत्र में किशोरों की हत्या या लापता होने की घटनाएं सामने आई हैं।
कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि:

> "रतनपुर का सामाजिक तानाबाना जैसे टूट रहा है... बच्चों की सुरक्षा अब भगवान भरोसे है।"




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 कहां है जवाबदेही?

क्या हर बार सिर्फ एक गिरफ्तारी से न्याय पूरा हो जाएगा?

क्या एक मासूम की जान की कीमत बस एक आश्वासन है?

क्यों रतनपुर में बार-बार मातम पसरा रहता है?



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 निष्कर्ष:

इस घटना ने सिर्फ एक परिवार को नहीं, बल्कि पूरे गांव की आत्मा को झकझोर दिया है।
पुलिस को चाहिए कि हर पहलू पर निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करे, ताकि चिन्मय सूर्यवंशी को सच्चा न्याय मिल सके और रतनपुर को हर बार 'श्राप' झेलने की ज़रूरत न पड़े।

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