भरारी में खामोशी चीर गई मासूम की चीख: 13 दिन बाद स्कूल से मिली चिन्मय की लाश, मोबाइल बना मौत की वजह

भरारी में खामोशी चीर गई मासूम की चीख: 13 दिन बाद स्कूल से मिली चिन्मय की लाश, मोबाइल बना मौत की वजह

संतोष सोनी चिट्टू 

भरारी (रतनपुर), 13 अगस्त 2025:
भरारी गांव की गलियों में पसरा सन्नाटा अब मातम में बदल चुका है। 13 वर्षीय चिन्मय सूर्यवंशी, जिसकी गुमशुदगी ने पूरे गांव को बेचैन कर रखा था, 13 दिन बाद गांव के ही स्कूल में लाश के रूप में मिला। उम्मीदों की डोर टूट गई और गांव में ग़ुस्से और ग़म का सैलाब उमड़ पड़ा।


"चिन्मय कहां है?" – अब ये सवाल नहीं, चीख बन गया है

बीते 31 जुलाई की शाम, मासूम चिन्मय अचानक लापता हो गया था। न कोई सुराग, न कोई जानकारी। मां की आंखें बेटे की राह तकती रहीं, पिता का दिल एक-एक पल चीरता रहा, और गांव के लोग हर गुजरते दिन के साथ दहशत और उम्मीद के बीच झूलते रहे। हर मोड़, हर झाड़ी, हर कोना तलाशा गया... लेकिन सच स्कूल की दीवारों के पीछे छिपा बैठा था।


हत्यारा निकला पहचान वाला, 19 साल का छत्रपाल निकला गुनहगार

इस दर्दनाक वारदात का सिर्फ एक कारण - मोबाइल फोन।


पुलिस जांच में सामने आया कि गांव का ही युवक छत्रपाल सूर्यवंशी (19 वर्ष), पिता उत्तम सूर्यवंशी, जो मृतक का करीबी जानकार था, मोबाइल को लेकर हुए झगड़े में बेकाबू हो गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, छत्रपाल ने चिन्मय की हत्या कर शव को गांव के ही स्कूल में शादी गली के पास फेंक दिया।


कैसे टूटा हत्यारे का नकाब?

हत्या के 15 दिन बाद, जब आरोपी मोबाइल बेचने एक दुकान गया, तो वहीं से साइबर टीम को मोबाइल की लोकेशन मिली। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को दबोच लिया। पूछताछ में सच उगला गया — उसने हत्या करना स्वीकार किया और शव की जानकारी दी।



भरारी में उबाल, गांव मांग रहा इंसाफ

जैसे ही यह खबर फैली कि चिन्मय की हत्या हो चुकी है, गांव में शोक की लहर दौड़ गई। लेकिन शोक के साथ गुस्सा भी साफ दिखा। हर गली, हर चेहरा कह रहा था —
"एक मासूम की जान सिर्फ मोबाइल के लिए ले ली गई?"

गांववाले सवाल कर रहे हैं कि

  • क्या मोबाइल अब हत्या का कारण बनता जा रहा है?
  • क्या हमारी युवा पीढ़ी तकनीक की आंधी में इंसानियत भूल चुकी है?
  • और सबसे बड़ा सवाल — अब कौन मां को उसका बेटा लौटा पाएगा?

अब सवाल सिर्फ हत्या का नहीं, समाज की सोच का है

एक 13 साल का मासूम बच्चा, जिसकी दुनिया सिर्फ खेल, स्कूल और सपनों तक सीमित थी, वो एक मोबाइल की कीमत चुका गया — अपनी जान देकर।
क्या अब समय नहीं आ गया कि हम अपने बच्चों को ग़लत रास्तों से बचाने के लिए खुद जागें? क्या अब भी हम आंखें मूंदे रहेंगे?


भरारी रो रहा है... और उसके साथ रो रही है इंसानियत।


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