रतनपुर से संतोष सोनी चिट्टू
रतनपुर (बिलासपुर),
सोमवार रात छत्तीसगढ़ के रतनपुर थाना क्षेत्र के ग्राम बारीडीह में इंसानियत को झकझोर देने वाली एक भीषण और हृदयविदारक दुर्घटना हुई। रात करीब 11 बजे नंदलाल पेट्रोल पंप के पास, तेज़ रफ्तार एक हाईवा ट्रक ने सड़क किनारे बैठे 17 गौवंशों को कुचल डाला, जिनमें सभी की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। पांच अन्य गायें गंभीर रूप से घायल हैं और उनका उपचार जारी है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हाईवा की रफ्तार इतनी अधिक थी कि चालक ने ब्रेक तक नहीं लगाया। हादसे के बाद घंटों तक घायल गौवंश सड़क पर तड़पते रहे, जिससे वहां मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं। यह दृश्य इतना भयावह था कि गांव में तनाव और गुस्से का माहौल बन गया।
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ग्रामीणों का फूटा गुस्सा: "ये पहली घटना नहीं है"
घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय ग्रामीणों की भीड़ घटनास्थल पर एकत्र हो गई। ग्रामीणों ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा:
> “यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ महीनों में कई मवेशी तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आ चुके हैं, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधि पूरी तरह चुप हैं।”
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क किनारे बेसहारा पशुओं की मौजूदगी पर कोई भी प्रभावी और स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है। न गोशालाओं की समुचित व्यवस्था, न सड़क सुरक्षा संकेत, और न ही गति सीमा नियंत्रण – सब कुछ सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया है।
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गौठान योजना पर सवाल – "कहां गए जनता के पैसे?"
छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी ‘गौठान योजना’ का जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नजर नहीं आता। ग्राम बारीडीह और आसपास के क्षेत्रों में कोई कार्यशील गौठान नजर नहीं आता, जबकि इसके नाम पर लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं।
गांववालों ने सीधा सवाल उठाया है:
> “अगर गौठान हैं तो फिर ये गायें सड़क पर क्यों बैठी थीं? क्या जनता का पैसा सिर्फ प्रचार में बर्बाद किया जा रहा है?”
मांगें जो अब अनदेखी नहीं होनी चाहिए:
1. दोषी चालक पर कठोर कानूनी कार्रवाई
2. सड़क किनारे चेतावनी बोर्ड और स्पीड ब्रेकर
3. सक्रिय और उपयोगी गौठानों में मवेशियों की रख रखाव
4. रात्रिकालीन गश्त और बेसहारा मवेशियों की निगरानी
5. स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही तय की जाए
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निष्कर्ष:
यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक संवेदनहीनता और प्रशासनिक उदासीनता का ज्वलंत उदाहरण है। जब तक हम बोल नहीं सकने वाले प्राणियों के जीवन की भी उतनी ही कद्र नहीं करेंगे, तब तक समाज को "सभ्य" कहने का कोई औचित्य नहीं।
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