टेक्निकल इशू” या सुनियोजित लूट?अंबिकापुर के अस्पताल पर आयुष्मान योजना की धज्जियाँ उड़ाने का आरोप, अब न्याय की मांग

“टेक्निकल इशू” या सुनियोजित लूट?
अंबिकापुर के अस्पताल पर आयुष्मान योजना की धज्जियाँ उड़ाने का आरोप, अब न्याय की मांग

सरगुजा/अंबिकापुर, छत्तीसगढ़
आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र से एक बड़ा खुलासा सामने आया है। अंबिकापुर के लाइफ लाइन अस्पताल पर आयुष्मान भारत योजना के नाम पर गरीब मरीज से लाखों की वसूली का गंभीर आरोप लगा है। मामला सामने आने के बाद जिलेभर में स्वास्थ्य व्यवस्था और निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं।

शिकायतकर्ता कौन?
समाजसेवी दीपक मानिकपुरी ने मामले को उजागर करते हुए इसे “गरीबों की योजनाओं को लूटने की सुनियोजित साजिश” बताया है। उन्होंने पूरे मामले की शिकायत कलेक्टर, सीएमएचओ और कोतवाली थाना में दर्ज कराई है।


क्या है पूरा मामला?

पीड़िता: राजकुमारी देवी, ग्राम पंचायत रामनगर, थाना बिश्रामपुर, जिला सूरजपुर
तारीख: 11 फरवरी 2025
स्थान: लाइफ लाइन अस्पताल, अंबिकापुर
शिकायत: इलाज के नाम पर आयुष्मान कार्ड होते हुए भी ₹2 लाख से अधिक की नकद वसूली

RTI से मिली जानकारी:

  • मरीज के आयुष्मान कार्ड से दो बार क्लेम स्वीकृत
    • ₹50,000 (12-17 फरवरी: मेडिकल केस)
    • ₹72,200 (17-20 फरवरी: सर्जिकल केस)

चौंकाने वाली बात:
सर्जरी 16 फरवरी को की गई, लेकिन योजना के तहत इसकी मंजूरी 17 फरवरी से दर्शाई गई


नकद वसूली का खेल:

  • ₹40,000 नकद लेकर दिया गया महंगा इंजेक्शन “MIREL”
  • इसके बाद दवाओं और टेस्टों के नाम पर ₹1,60,330 और वसूले गए
  • कुल वसूली: लगभग ₹2 लाख से अधिक, जबकि योजना पूरी तरह कैशलेस है

डॉक्टरों के बयानों में बड़ा अंतर

  • डॉ. सूर्यवंशी (रायपुर): “ऑपरेशन सफल, ब्लॉकेज ठीक”
  • डॉ. असाटी (अंबिकापुर): “अब भी दो ब्लॉकेज बाकी, सर्जरी बाद में”

सवाल:

  • क्या यह चरणबद्ध इलाज की आड़ में ज्यादा बिलिंग और वसूली का खेल है?

प्रमुख सवाल जो अब उठ रहे हैं:

  • “टेक्निकल इशू” सिर्फ बहाना या साजिश?
  • जब कार्ड से क्लेम स्वीकृत था, तो फिर नकद क्यों?
  • डॉक्टरों के उलझे बयान – क्या यह गुमराह करने की कोशिश?
  • सरकारी निगरानी और ऑडिट सिस्टम आखिर कहां है?

जनता की मांग:

  1. लाइफ लाइन अस्पताल पर FIR दर्ज हो
  2. आयुष्मान योजना के सभी क्लेम्स का स्वतंत्र ऑडिट हो
  3. दोषी डॉक्टरों और प्रबंधन पर लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई हो
  4. भविष्य में गड़बड़ी रोकने रियल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम लागू हो

निष्कर्ष:

यह मामला सिर्फ एक मरीज का नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का आईना है। जहां मुफ्त इलाज की योजना को मुनाफाखोर अस्पतालों ने कमाई का जरिया बना लिया है।
यदि इस बार भी कार्रवाई “टेक्निकल इशू” में दबा दी गई, तो यह “आयुष्मान” नहीं, गरीबों के साथ क्रूर मज़ाक साबित होगा।

अब देखना यह है कि प्रशासन इसे कितनी गंभीरता से लेता है — न्याय होगा या फाइलों में दफन हो जाएगा?

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