रतनपुर — छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी रतनपुर में इन दिनों महामाया मंदिर के पीछे की आदिवासी भूमि पर भू-माफियाओं का गोरखधंधा चरम पर है। खसरा नंबर 3298/5 की जमीन में अवैध प्लाटिंग कर दर्जनों लोगों को टुकड़ों में जमीन बेच दी गई है, और ये खेला किया है एक जनसंघी नेता ने — जो अब अपनी ऊपरी पहुँच का लाभ उठाकर इस अवैध सौदे को वैध कराने की फिराक में है।
बिना डायवर्सन, बिना अनुमति... फिर भी जारी ज़मीन की लूट!
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि न तो जमीन का डायवर्सन कराया गया और न ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से अनुमति ली गई। इसके बावजूद कई एकड़ कृषि भूमि पर मुरुम की सड़कों का निर्माण कर ‘प्लाटिंग मार्केटिंग’ जोरों पर है। बगैर रेरा पंजीयन के चल रही इस प्लाटिंग में किसान तो लुट ही रहे हैं, साथ ही सरकार को करोड़ों के राजस्व का भी नुकसान हो रहा है।
नामांतरण पर लगी रोक, लेकिन ऊपरी पहुंच का ‘जादू’?
सूत्रों के अनुसार प्रशासन ने मामले की भनक लगते ही नामांतरण प्रक्रिया पर रोक लगा दी है और नोटिस भी जारी कर दिया है। लेकिन भू-माफिया नेताजी अब अपनी ऊंची राजनीतिक पहुंच के दम पर इसे वैध कराने की कोशिश में हैं। अंदरूनी हलचलों की मानें तो पटवारी से लेकर तहसील तक दबाव बनाने की कोशिशें चालू हैं।
किसे-किसे बेची गई जमीन?
आदिवासी जमीन को प्लाट में काटकर निम्नलिखित लोगों को बेचा गया —
राजेस पैकरा, महेश कुमार जगत, सलीके राम मरकाम, योगेश्वर सिरसो, रमाकांत स्याम, आदित्य सिंग मरावी, दिलीप कुमार राज, कैलास सिंह पैकरा, बसन्त कुमार पैकरा, मोहन कुमार चेतम, महेंद्र कुमार पोर्ट, जगमोहन मरकाम — यह सूची साफ दर्शाती है कि ‘डील’ पहले से तय थी।
प्रशासन की चुप्पी — संदेह या मिलीभगत?
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों को सब पता है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कागजों की खानापूर्ति हो रही है। राजस्व विभाग की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है और अब यह सवाल खड़ा हो रहा है — क्या यह सबकुछ ‘ऊपर के आशीर्वाद’ से हो रहा है?
अब क्या?
अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन इस गंभीर भूमि घोटाले पर सख्त कदम उठाएगा या भू-माफियाओं की राजनीतिक पकड़ के आगे फिर एक बार कानून की नकेल ढीली पड़ जाएगी?
📌 रतनपुर की जनता पूछ रही है — “कब रुकेगा जमीन माफियाओं का खेल?”
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